Saturday, 30 May 2020

गढ़वाली कविता - जन छुंणक्याली खुट्युं की छुम_छुम हों (जैसे कहीं किसी पहाड़ी पर) / रूचि बहुगुणा उनियाल

गढ़वाली कविता 

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+  Bejod ) 



जन छुंणक्याली खुट्युं की छुम_छुम हों
सुणेंणी कखी बीठूं फर पैजबी 
तुमारी हैंसी सूंणी सार्युं का गीत होला हर्यांणा
सुरम्यळी आँख्युं की मायादार छुंई
जन घिच्चीम काफुळुं कु स्वाद
जन छोय्यों कु पाणी हो कखि फुटणुं
जन पैंणां की कंडी हो
ऐनु ललचौण्ंया तुमारु मिज्याज
तुमारी लाल बिंदी जन
ह्यूंवळी डांड्युंम खिल्युं हो चट्ट लाल बुरांस
अर तुमारु सारु यनु छ जनु कि
सैस्र्या बेटुल्यौंक औंदा_जांद बट्व्युंम
दीन्ंयु रैबार
तुमारी युं मायादार सनकौंण्या आँख्युं की सौं
भौत भलु लगदु तुमु दगड़ी
छुंयुंमा आफ्फुकै बिसरौंणु
.......


(हिंदी अनुवाद)
जैसे कहीं किसी पहाड़ी पर 
छम_छम बजती सुनाई देती हों पैरों में पाजेब 
तुम्हारी हंसी सुनकर 
खेतों में गीत हरियाते हों जैसे 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों की प्यार भरी बातें 
जैसे मुँह में काफल का स्वाद
जैसे कहीं पानी का स्रोत फूटा हो
जैसे कलेवे की टोकरी हो
ऐसा ललचाने वाला तुम्हारा स्वभाव 
और तुम्हारा सहारा ऐसा है 
जैसे कि ससुराल में बेटियों को 
आते-जाते बटोही के पास भेजे गए संदेश हों
तुम्हारी इशारे करने वाली इन
प्रेम भरी आँखों की सौगंध 
तुम्हारे साथ बात करते हुए 
खुद को भुलाना बहुत अच्छा लगता है.
........

कवयित्री - रूचि बहुगुणा उनियाल
पता - नरेंद्र नगर (उत्तराखंड)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Monday, 22 July 2019

तेरू जलम (तेरे जन्म के) / कवयित्री - रूचि बहुगुणा उनियाल

तेरू जलम
(हिन्दी अनुवाद के साथ)

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India) 


तेरू जलम 
नी होण कु रैबार 
देद्या द्योरान
 सौंणा मैना 
बर्खदु रैंद थौ
अब तीसा रैग्यान
सैरा गाद गदेना
सैरा धारा मंगरा
तड़तड़ु घाम ल्हग्युं 
बर्खण्यां मैनों 
अँध्यार चौमासम
जेठा मैनों घाम ल्हग्युं 
 अर तचणीं छन 
डोखरी, पुंगड़ी! 
नौनी अर बरखा 
न होंण सी
हर्चीगे 
डेरों  अर पुंगड़्युं की 
रस्यांण…! 
लठ्याळी…… 
नौनी तेरू
अर बरखा कु बी
कखी "नौ नी"  बल! 
.....


(हिन्दी अनुवाद)

तेरे जन्म के
न होने का संदेश 
मौसम ने दे दिया है 
सावन के महीने में 
बरसता था घन
अब प्यासे रह गये हैं 
गाद -गदेरे
धारे और मंगरे
बरसात के दिनों में 
तेज धूप लगी है 
चौमास के अँधियारे महीनों में 
जेठ के महीने जैसी
धूप लगी है 
और… 
खेत खलिहान 
धूप से 
जल रहे हैं! 
कन्या और बरखा 
न होने से 
उड़ गयी है 
खेतों और घरों की रौनक 
सुन ओ लड़की! 
अब गढ़वाल के पहाड़ों पर 
तेरा और बरखा का भी 
कहीं कोई नाम नहीं है! 
......

कवयित्री - रूचि बहुगुणा उनियाल
पता - नरेंद्र नगर (उत्तराखंड)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com